भारतीय तंत्र शास्त्र कितना पुराना है , यह बता पाना तो कठिन है। पर , इतना जरुर है कि प्रकृति के प्रारम्भ से विश्व विकास तक को अपने आप में समेट लेने वाला शास्त्र ही तंत्र शास्त्र है। यूं तो तंत्र शास्त्र कि व्याख्या व्यापक है , पर इसकी कुछ मौलिक व्याख्या और अर्थ , जिस पर यह आधारित है , यहां क्रमवार स्पष्ट किये जा रहे हैं :—-
१. व्याकरण शास्त्र के अनुसार तंत्र शब्द का अर्थ होता है – विस्तारकारी। यानि , बिंदु से विश्व विस्तार तक , स्थूल से सूक्ष्म तक , मूलाधार से संपूर्णता तक का विस्तार ही तंत्र है।
२. एक मौलिक अवधारणा के अनुसार तंत्र का अभिप्राय – गुप्त रूप से बातचीत करना या गुप्त विषय के बारे में बताना । इस अवधारणा में मंत्रों और यंत्रों कि व्याख्या सन्निहित है। मंत्रों में गुप्त परिभाषा और यंत्रों में गुप्त विषय छुपे रहते हैं। यह शास्त्र इन्ही गुप्त विषयों के परिभाषण कि व्याख्या करता है।
३. वेदांत दर्शन के अनुसार तंत्र कि व्याख्या – वक्ता के निहित अभीष्ट अर्थ का ज्ञापक ही तंत्र है। यानि , वक्ता जो कहना चाहता है , उसके अर्थ , उसके शब्दों के स्फोट से ही प्रकट होते हैं। शब्द स्वयं ब्रह्म रूप है , अजर है , अमर है। मंत्र भी शब्द रुपी है। यही वक्ता का अभीष्ट अर्थ है। यह शास्त्र उसे ही ज्ञापित करता है , इसलिए इसे तंत्र शास्त्र कहा जाता है।